स्लम से निकलकर IAS अफसर बनने की अनसुनी कहानी:उम्मूल खेर
स्लम से निकलकर IAS अफसर बनने की अनसुनी कहानी:उम्मूल खेर
आज हम इस सीरीज के माध्यम से उस बेटी की बात करेंगे जिसने मुकद्दर को मात देकर सितारों से आगे अपना अलग मुकाम बनाया है आज हम बात करेंगे कि किस तरह से एक बेटी जो झुग्गी झोपड़ी से निकलकर यूपीएससी में सफलता का कीर्तिमान रच कर LBSNNA जैसी सपनों की मंजिल का सफर तय करती है जी हां दोस्तों आज की इस सीरीज में हम उम्मूल खेर के संघर्षों को बयां करेंगे।
यूपीएससी की परीक्षा 2016 में अपने पहले प्रयास में 420 वीं रैंक हासिल करके शानदार कीर्तिमान रचने वाली उम्मूल खेर का जन्म राजस्थान के पाली मारवाड़ में हुआ था वह बचपन से ही विकलांग पैदा हुई थी परंतु उन्होंने अपनी विकलांगता को बाधा ना मानते हुए मजबूती बनाते हुए लगातार एक के बाद एक सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गयी दुखद बात यह थी कि उम्मूल को विकलांगता के साथ बचपन से अजैले बोन डिसऑर्डर नामक बीमारी हो गई थी जो आमतौर पर एक दुर्लभ बीमारी है जिसने अमूल के जीवन को और कठिन बना दिया था गरीबी तो उन्हें खैर विरासत में ही मिली थी।
"उम्मूल अपनी गरीबी के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि मुझे चार चार दिन बांसी फूंद लगी रोटी खा कर गुजारा करना पड़ता था।"
उम्मूल का परिवार दिल्ली स्थित सड़क किनारे झुग्गी झोपड़ियों में रहा करता था उनके पिता सड़क किनारे फुटपाथ पर ठेला लगाकर जीवन यापन करते थे परंतु एक समय ऐसा भी आया कि सरकार के आदेश के बाद सड़क किनारे के पास से सभी झुग्गियां हटवा दी गई अब मूल के पास दो ही ऑप्शन थे कि वह राजस्थान अपने मूल स्थान लौट जाए या आगे बढ़कर अपने सपनों की मंजिल बुन सके। उम्मूल कहती हैं कि परिवार रूढ़िवादी किस्म का होने के कारण यह नहीं चाहता था कि बेटी आगे पढे परंतु उम्मूल हार ना मानते हुए आगे की पढ़ाई करने की सोचती है और वह दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में आ जाती है। एक तरफ मां का देहांत तथा पिता ने उन्हें घर से बेसहारा कर दिया वहीं दूसरी तरफ आगे जिंदगी चलाने के लिए संघर्ष सामने था उम्मूल दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में ही किराए पर कमरा लेती हैं और घर का खर्च चलाने के लिए छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है।
"उम्मूल अपने संघर्ष को याद करते हुए कहती हैं कि मैं ₹50 एक बच्चे की फीस लेकर शाम को आधी रात तक बच्चों को पढ़ाया करती थी और उन्हीं दिनों उन्हें आईएएस बनने का सपना जाग उठा।"
उम्मूल पांचवी तक की पढ़ाई आईटीओ में बने एक दिव्यांग स्कूल में हासिल की उसके बाद आठवीं तक कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढ़ाई की। आठवीं की परीक्षा में अव्वल नंबर से पास की और उन्हें स्कॉलरशिप का लाभ मिला स्कॉलरशिप की बदौलत उन्हें एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। दसवीं में 91 फ़ीसदी और 12वीं में 90 फ़ीसदी अंक हासिल करने के बाद उम्मूल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजि से ग्रेजुएशन किया आगे की पढ़ाई के लिए प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी का रुख किया और मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वही एमफिल में एडमिशन लिया इसी दौरान कई बार उमुल खेलने विदेश यात्रा भी की और कई कॉलेजों से सम्मान प्राप्त किया परंतु इस बीच वह इतना व्यस्त हो गई कि यूपीएससी की परीक्षा के लिए समय ही नहीं मिल पा रहा था किंतु सब कुछ छोड़कर सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर आईएएस की तैयारी शुरू कर दी हैं और पहली ही प्रयास में 420वीं रैंक अ हासिल करके नया कीर्तिमान बनाती हैं।
मूल के संघर्षों को अपने शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल काम है उनके संघर्षों के जीवन के एक छोटे से अंश को हमने बयां करने की कोशिश की है गरीबी और विकलांगता को मात देकर बेमिसाल सफलता का उदाहरण पेश करने वाली उम्मूल के जज्बे को कितनी बार भी सलाम किया जाए कम है उनके संघर्षों को नजदीक से समझने के लिए इस वीडियो को अवश्य देखें।
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