निबंध: धर्म का अर्थ स्वाकर्तव्यपालन से या मजहब से।
प्रिय साथियों आज का हमारा लेख धर्म के अर्थ से संबंधित है अर्थात आज हमें समझने की कोशिश करेंगे कि धर्म का अर्थ मजहब से (जो कि अधिकांश लोग यही समझते हैं ) या कर्तव्यपालन से है, सबसे पहले यह समझ लेना अनिवार्य है कि धर्म के अर्थ की समझने की आवश्यकता आज क्यों है?
आज के समय में आतंकवाद मॉब लिंचिंग तथा धर्म युद्ध जैसे शब्द आम हो गए हैं सूक्ष्म विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि इसका संबंध कहीं ना कहीं धर्म से ही है अर्थात इंसान धर्म के नाम पर इंसानों का कत्ल करने पर आमादा है कई देशों में आतंकवादी गुट सिर्फ इसलिए सक्रिय हैं क्योंकि वह अपने मूल धर्म को स्थापित करना चाहते हैं वही आपको कई बार यह सुनने को मिल जाएगा कि धर्म के नाम पर(गौ हत्या,किसी विशेष धर्म से नफरत होनेपर) उक्त व्यक्ति की हत्या कर दी गई इस बात से पूर्णता सिद्ध होता है कि उन्हें शायद धर्म का अर्थ पता ही नहीं है ,वहीं दूसरी ओर इंसान अपने कर्तव्यों का पालन ना कर के स्वार्थी होता जा रहा है ।संस्कारों तथा संस्कृतियों का विनाश हो रहा है इंसानी रिश्ते खून बहा रहे हैं। इंसान खुद के स्वार्थ के लिए जघन्य अपराध कर रहा है विडंबना देखिए भाई भाई के खून का प्यासा है संपत्ति के लिए मां-बाप को मौत के घाट उतारा जा रहा है बुजुर्ग दाने-दाने को मोहताज है उन्हें कलयुगी श्रवण वृद्ध आश्रम में छोड़ रहे हैं।
इन सभी परिस्थितियों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इंसान अपने कर्तव्य (धर्म) के पालन को भूल रहा है इसलिए यह समझ लेना जरूरी है कि धर्म का अर्थ कर्तव्यपालन तथा मानवता से है ना कि मजहब से। एक अर्थ में धर्म रिलीजन शब्द का अनुवाद है जिसका तात्पर्य है मजहब, यदि कोई समूह कोई निश्चित कर्मकांड या साधना पद्धतियों का पालन करता हो तो उसे रिलीजन या मजहब कहते हैं परंतु यहां हमें धर्म का अर्थ कर्तव्य पालन से समझने का प्रयास करना है। धर्म का अर्थ मजहब या स्वकर्तव्यपालन से है इसमें अंतर समझने के लिए तीन वाक्यों का प्रयोग करेंगे।
1- आग का धर्म है जलाना।
2- पुत्र का धर्म है पिता की सेवा करना।
3 -मेरा धर्म है इस्लाम ।
पहले वाक्य को गौर से देखने पर यही पता चल लगेगा कि यहां धर्म का प्रयोग स्वभाव के अर्थ में किया गया है क्योंकि आग का यह स्वभाव होता है जलाने का। वहीं दूसरे वाक्य को देखने से पता लगता है कि धर्म का अर्थ कर्तव्यपालन/अभ्युदय से है तीसरे वाक्य से तो स्पष्ट है ही है कि धर्म का अर्थ मजहब से है इस प्रकार हम पहले वाले वाक्य अर्थात जिस धर्म का अर्थ है स्वभाव ,को छोड़कर धर्म का अर्थ कर्तव्य पालन तथा मजहब से है,कि बात करेंगे इसको सत्यापित करने के लिए हम कुछ विद्वानों के विचारों तथा शास्त्रों का सहारा लेंगे ध्यान रहे यहां हम सिर्फ हिंदू धर्म के उदाहरणों का प्रयोग कर रहे हैं अन्य सभी धर्मों में भी कई प्रावधान है जो शांति सद्भावना तथा समन्वय की बात करते हैं परंतु कुछ चंद लोगों ने अपने स्वार्थ की खातिर धर्म को बदनाम किया है।
मजदूरों के साथ इतनी संवेदनहीनता क्यों?
1- मनुस्मृति- मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )।
2- गीता- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
भावार्थः जब जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म आगे बढ़ने लगता है, तब तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं । सज्जनों की रक्षा एवं दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं विभिन्न युगों (कालों) मैं अवतरित होता हूं ।
3- महाभारत- धरति धारयति वा लोकं इति धर्मः'' जो लोक को धारण करे वह धर्म है अर्थात जिस नियम के कारण यह सम्पूर्ण सृष्टि चल रही है वही धर्म है। धर्म धरती को नियन्त्रित करने वाले सर्वश्रेष्ठ संयन्त्र का नाम है।
4- तुलसीदास- परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई'। परोपकार से बढ़कर दूसरा धर्म नही है और किसी को दुख पहुंचाने से बढ़कर कोई दूसरा अधर्म नहीं है।वास्तव में परोपकार के बारे में गोस्वामी तुलसीदास की ये उक्ति सब कुछ बयां कर देते है।
नोट- हो सकता है इन्हीं में से किसी शास्त्र में ऐसी बात लिखी हो जो आज के दौर में प्रासंगिक ना हो उस अपवाद को छोड़कर हम उसे धर्म की श्रेणी में नहीं लेते वर्तमान दृष्टिकोण में प्रासंगिक नैतिक कर्तव्य को ही धारण करना है।
उपर्युक्त उदाहरणों का सुक्ष्म विश्लेषण करने पर हमें यही ज्ञात होता है कि हमारे शास्त्रों तथा विचारको ने भी धर्म का अर्थ स्व कर्तव्य पालन के रूप में लिया है महात्मा गांधी जैसे विचारक भी धर्म को मूल में रखते हुए स्व कर्तव्य पालन की प्रेरणा देते हैं महात्मा गांधी के अनुसार धर्मविहीन/कर्तव्यविहीन राजनीति मृत देह के समान है जिसे जला देना चाहिए (यहां पर महात्मा गांधी जी ने धर्म का अर्थ स्वकर्तव्यपालन से लिया है) इन बातों से स्पष्ट है कि धर्म का अर्थ यदि स्वकर्तव्यपालन से लिया जाए तो समाज में व्याप्त कट्टरता अंधविश्वास धार्मिक उन्माद को दूर करके शांति सौहार्द सद्भावना तथा समन्वय को कायम किया जा सकता है और रूढ़ियों तथा आडम्बरों से मनुष्य को बचाया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर कई समूहों में पशु बलि तथा हलाला ,वर्ण व्यवस्था जैसी कुप्रथा प्रचलित हैं और इनका संबंध कहीं न कहीं धर्म से ही है इस प्रकार इसे धर्म (कर्तव्यपालन) की कसौटी पर रखकर देखें तो किसी भी मनुष्यता के द्वारा ऐसे कृत्य करना शायद अपराध की श्रेणी में ही आएगा क्योंकि एक मनुष्य का कर्तव्य दूसरे मनुष्य का सहयोग करें वही मनुष्य का ये भी कर्तव्य है कि वह पशु पक्षियों तथा पेड़ पौधों का सम्मान करें। मनुष्य के कर्तव्यों को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है ।उदाहरण के लिए कई समूहों में पेड़ पौधे( नीम पीपल तुलसी आदि) को देवताओं की तरह पूजा जाता है और उन्हें पूरी तरह सुरक्षित रखा जाता है उन्हें उस समूह विशेष द्वारा छति नहीं पहुंचाई जाती है इस बात से तो यही प्रमाणित होता है कि यहां पर धर्म के माध्यम से नैतिक कार्य किया जा रहा है और धर्म का अर्थ कर्तव्यपालन के रूप में साकार करने का प्रयास किया जा रहा है वहीं सिख धर्म में लंगर की व्यवस्था भी नैतिकता और कर्तव्य पालन की ओर इशारा करती है।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि धर्म का अर्थ कर्तव्य पालन से लिया गया है हमें आज किसी धर्म में व्याप्त रूढ़ियों और आडम्बरो से बचना चाहिए और नैतिकता के आधार पर स्वकर्तव्य पालन की अवधारणा को स्वीकार करना चाहिए कुछ चंद लोग धर्म के ठेकेदार बने समाज में घूम रहे हैं और वह किसी ना किसी रूप में लोगों को गुमराह कर रूढियों धार्मिक अंधविश्वास हो या आडम्बरों जैसे कृत्यों का रास्ता दिखा रहे हैं जिसके कारण समाज में कट्टरता था धार्मिक उन्माद बढ़ना लाजमी है इसलिए हमें तथा धर्म गुरुओं को धर्म का सही अर्थ समझ कर लोगों को जागरूक करके सही रास्ते पर चलने की शिक्षा देनी चाहिए।
धन्यवाद।
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सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंआज हमारे समाज में बहुत सी बुराईयां व्याप्त है । जो हमारे देश को अंदर से खोखला कर रही हैं । जिसे दूर करना चाहिए । उसके लिए यह एक पहल होगी।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद मित्र response देने के लिए।
हटाएंVery interesting
जवाब देंहटाएंThnku brother
हटाएंThank you brother...
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक विश्लेषण
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